Hindi story: गांव में एक बड़ा सा घर था, जो कभी बहुत हंसता-खेलता हुआ हुआ करता था। इस घर के मालिक थे रामलाल और उनकी पत्नी सुमित्रा देवी। उनके चार बेटे थे: विजय, सुरेश, राकेश, और सबसे छोटा बेटा, मनीष। रामलाल का देहांत कुछ वर्षों पहले हो गया था, और अब घर की देखभाल सुमित्रा देवी ही करती थीं।
समय बीतता गया और चारों बेटे बड़े हो गए। विजय सबसे बड़ा था और शहर में नौकरी करता था। सुरेश और राकेश भी अपनी-अपनी जिंदगियों में व्यस्त थे। लेकिन मनीष, जो सबसे छोटा था, वह अपनी मां के साथ ही रहता था और उनकी देखभाल करता था। मनीष की सादगी और अपने परिवार के प्रति समर्पण ने उसे घर का सबसे प्यारा और जिम्मेदार बेटा बना दिया था।
समय के साथ, सुमित्रा देवी की तबीयत बिगड़ने लगी। वह जानती थीं कि अब उनका अंत नजदीक है। उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी कि उनके बाद इस घर का क्या होगा। उन्होंने अपने चारों बेटों को बुलाया और कहा, “मुझे अब यह घर तुम्हें सौंपना है, लेकिन मैं चाहती हूं कि यह बंटवारा आपसी समझदारी से हो।”
चारों भाइयों ने आपस में विचार-विमर्श किया, लेकिन उनमें से कोई भी अपने हिस्से का त्याग करने को तैयार नहीं था। हर कोई अपने हिस्से के लिए लड़ने लगा। विजय ने कहा, “मैं सबसे बड़ा हूं, इसलिए घर का बड़ा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए।” सुरेश और राकेश भी अपने-अपने हिस्से के लिए जोर देने लगे। लेकिन मनीष चुपचाप अपनी मां की बात सुन रहा था और उसने कोई दावा नहीं किया।
सुमित्रा देवी ने सबकी बातें सुनीं और फिर कहा, “मैंने अपनी जिंदगी का हर पल इस घर में बिताया है। मेरे लिए यह घर केवल ईंट और पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि हमारी यादों का एक संग्रह है। इसलिए मैं चाहती हूं कि यह घर उसी के पास जाए, जो इसकी देखभाल कर सके और इसकी असली कीमत समझ सके।”
चारों बेटे सुमित्रा देवी की बातों को ध्यान से सुन रहे थे। सुमित्रा देवी ने आगे कहा, “यह घर मैंने मनीष के नाम कर दिया है।” यह सुनकर विजय, सुरेश और राकेश हैरान रह गए। उन्होंने तुरंत विरोध किया, “मां, ऐसा कैसे हो सकता है? हम भी आपके बेटे हैं और इस घर में हमारा भी हक है।”
सुमित्रा देवी ने कहा, “मैं जानती हूं कि तुम सभी मेरे बेटे हो, और मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। लेकिन मनीष ने कभी इस घर के लिए कोई दावा नहीं किया, उसने हमेशा अपने कर्तव्यों को निभाया है और मेरी सेवा की है। वह मेरे साथ हर पल खड़ा रहा है और उसने इस घर को संभाला है। इसलिए मैं चाहती हूं कि यह घर मनीष को मिले।”
विजय, सुरेश और राकेश को यह बात स्वीकारने में समय लगा, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ में आया कि उनकी मां ने यह फैसला सोच-समझकर लिया है। उन्होंने मनीष के प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस किया और मां के फैसले का सम्मान करने का फैसला किया।
मनीष, जो इस पूरे समय चुपचाप था, उसने कहा, “मां, मैं इस घर को कभी अपना नहीं मान सकता। यह आप सभी का है। मैं केवल आपके फैसले का सम्मान करूंगा और इस घर की देखभाल करूंगा। अगर मेरे भाइयों को कभी इस घर की जरूरत हो, तो यह घर उनका ही रहेगा।”
मनीष के इस भाव ने सबके दिल को छू लिया। विजय, सुरेश और राकेश ने अपने छोटे भाई के इस बड़े दिल का सम्मान किया और मां के फैसले को मान लिया।
सुमित्रा देवी ने मनीष को गले लगाया और कहा, “बेटा, तुमने आज साबित कर दिया कि सच्ची संपत्ति न केवल धन-दौलत में होती है, बल्कि दिल की विशालता और प्रेम में भी होती है। मैं जानती हूं कि यह घर तुम्हारे हाथों में सुरक्षित रहेगा और तुम इसे उसी तरह संभालोगे, जैसे मैं चाहती हूं।”
समय बीता और सुमित्रा देवी का निधन हो गया। मनीष ने अपनी मां की अंतिम इच्छाओं का सम्मान करते हुए घर की देखभाल की और इसे उसी तरह से रखा, जैसे उसकी मां चाहती थीं। विजय, सुरेश और राकेश भी समय-समय पर घर आते और मनीष के साथ अपने बचपन की यादें ताजा करते।
मनीष ने कभी इस घर को केवल अपनी संपत्ति नहीं माना। उसने इसे एक धरोहर के रूप में देखा और अपने भाइयों को हमेशा इस घर का हिस्सा माना। उसने अपनी मां की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारा और अपने भाइयों के साथ हमेशा स्नेह और सहयोग का संबंध बनाए रखा।
इस कहानी से चारों भाइयों ने सीखा कि संपत्ति का बंटवारा केवल वस्त्रों और धन का बंटवारा नहीं होता, बल्कि यह प्यार, सम्मान और जिम्मेदारी का भी बंटवारा होता है। मनीष की समझदारी और सादगी ने उनके रिश्तों को और भी मजबूत बना दिया। उन्होंने समझा कि असली धरोहर वो नहीं होती जो हमें जमीन-जायदाद के रूप में मिलती है, बल्कि वो होती है जो हमें प्रेम और समझदारी के रूप में मिलती है।
इस तरह, मनीष ने न केवल घर को संभाला, बल्कि उसने अपने भाइयों के दिलों में भी एक खास जगह बना ली। उसकी मां की अंतिम इच्छा ने उसे एक ऐसा इंसान बना दिया, जिसने परिवार को एकजुट रखा और सच्चे प्रेम का महत्व समझा।
समाप्त