जब फिल्म Pink की स्क्रिप्ट तैयार हो रही थी तब मेकर्स को एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो न सिर्फ सशक्त हो बल्कि उसकी मौजूदगी से किरदार को गहराई मिले। निर्देशक अनुभव सिन्हा और प्रोड्यूसर शूजित सरकार ने मिलकर यह तय किया कि फिल्म को सिर्फ एक सोशल ड्रामा नहीं बल्कि एक पावरफुल मैसेज वाली फिल्म बनाना है। इस सोच के साथ ही उन्होंने उस अभिनेता को ढूंढना शुरू किया जो इस भूमिका को पूरी संजीदगी से निभा सके।
शूजित सरकार की पहली पसंद थे अमिताभ
शूजित सरकार अमिताभ बच्चन के साथ पहले भी ‘Piku’ जैसी हिट फिल्म कर चुके थे। उनके मन में शुरू से ही ये बात थी कि Pink जैसी गंभीर फिल्म में अगर कोई व्यक्ति न्यायाधीश जैसा असर छोड़ सकता है तो वो सिर्फ अमिताभ बच्चन ही हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने बिना किसी और अभिनेता को कास्ट किए सीधा अमिताभ से संपर्क किया और स्क्रिप्ट भेजी।
अमिताभ ने स्क्रिप्ट पढ़ते ही हामी भर दी
अमिताभ बच्चन को जब इस फिल्म की स्क्रिप्ट दी गई तो उन्होंने एक ही रात में इसे पूरा पढ़ लिया। अगली सुबह उन्होंने शूजित सरकार को फोन किया और कहा कि यह फिल्म वह जरूर करेंगे। उन्होंने बताया कि यह कहानी बहुत ही जरूरी और समय की मांग है। खासकर लड़कियों की आवाज बनने वाला यह किरदार उन्हें बहुत सच्चा और प्रेरणादायक लगा।
किरदार को निभाने के लिए की खास तैयारी
फिल्म में अमिताभ बच्चन एक वकील की भूमिका में हैं जो साइकोलॉजिकल इश्यू से भी जूझ रहा होता है। इस किरदार के लिए उन्होंने काफी समय तक कोर्टरूम भाषणों की प्रैक्टिस की और असल जिंदगी के वकीलों के इंटरव्यू देखे। उन्होंने यहां तक बताया कि इस रोल ने उन्हें मानसिक रूप से भी झकझोर दिया क्योंकि यह सिर्फ एक्टिंग नहीं बल्कि एक सामाजिक संदेश था।
फिल्म बनी एक आंदोलन की शुरुआत
जब Pink रिलीज़ हुई तो उसे सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि एक आंदोलन की तरह देखा गया। अमिताभ बच्चन का डायलॉग ‘No Means No’ आज भी लोगों की ज़ुबान पर है। फिल्म को सराहा गया और इससे समाज में एक मजबूत संदेश गया। यह रोल अमिताभ की करियर की सबसे अलग और यादगार भूमिकाओं में से एक बन गया।