Tiranga: जाने कैसे Nana Patekar और Raj Kumar को फिल्म “Tiranga ” में मिला रोल, फिल्म की कुछ दिलचस्प कहानी

Tiranga: फिल्म तिरंगा (1993) एक क्लासिक भारतीय एक्शन-ड्रामा है, जिसमें दो अनुभवी कलाकार, नाना पाटेकर और राज कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म उस समय की सबसे बड़ी हिट्स में से एक बनी और आज भी इसे उसके दमदार डायलॉग्स, एक्शन और देशभक्ति की भावना के लिए याद किया जाता है। फिल्म में नाना पाटेकर और राज कुमार की जोड़ी ने जो अदाकारी की, उसने फिल्म को एक कालजयी दर्जा दिलाया।

Tiranga: फिल्म तिरंगा (1993) एक क्लासिक भारतीय एक्शन-ड्रामा है, जिसमें दो अनुभवी कलाकार, नाना पाटेकर और राज कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म उस समय की सबसे बड़ी हिट्स में से एक बनी और आज भी इसे उसके दमदार डायलॉग्स, एक्शन और देशभक्ति की भावना के लिए याद किया जाता है। फिल्म में नाना पाटेकर और राज कुमार की जोड़ी ने जो अदाकारी की, उसने फिल्म को एक कालजयी दर्जा दिलाया।

कैसे नाना पाटेकर और राज कुमार को मिला तिरंगा का रोल?

इस फिल्म के निर्देशक मेहुल कुमार ने कहानी को विशेष रूप से दो विपरीत स्वभाव वाले किरदारों के इर्द-गिर्द बुना था। यह किरदार थे ब्रिगेडियर सूरज सिंह (राज कुमार) और इंस्पेक्टर शिवाजी राव वाघमारे (नाना पाटेकर)। एक अनुभवी और बेहद शांत स्वभाव वाला फौजी अधिकारी और दूसरा गरम मिजाज और बेबाक पुलिस इंस्पेक्टर, जिनकी आपस में टकराहट और तालमेल कहानी का मुख्य आधार थी। निर्देशक चाहते थे कि ये किरदार ऐसे अभिनेताओं द्वारा निभाए जाएं जो अपने अभिनय में प्रखरता और गहराई लाने में सक्षम हों।

पहले किरदार ब्रिगेडियर सूरज सिंह के लिए मेहुल कुमार ने राज कुमार को चुना। उनकी अद्वितीय संवाद शैली, उनकी मजबूत आवाज, और उनका गंभीर चेहरा सूरज सिंह जैसे कड़क किरदार के लिए एकदम फिट था। राज कुमार की मौजूदगी में यह किरदार केवल एक सैन्य अधिकारी नहीं बल्कि एक आदर्शवादी देशभक्त के रूप में उभरता है, जो न्याय और देशभक्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

वहीं, दूसरी ओर, इंस्पेक्टर शिवाजी राव वाघमारे का किरदार ऐसा था जिसमें उग्रता, मस्ती और एक तेजतर्रार शैली की जरूरत थी। नाना पाटेकर का अभिनय शैली इस किरदार के लिए बिल्कुल उपयुक्त थी। नाना पाटेकर के अभिनय में स्वाभाविकता और उनकी बेबाकी ने शिवाजी राव को बेहद दिलचस्प और वास्तविक बना दिया।

किरदार की तैयारी

राज कुमार और नाना पाटेकर, दोनों ही अपने किरदारों के प्रति काफी गंभीर थे। राज कुमार ने अपने संवादों को बेहद धीमी और गहरी आवाज में बोलने की शैली अपनाई, जो दर्शकों को उनके किरदार में खोने पर मजबूर कर देती थी। वहीं नाना पाटेकर ने अपनी बॉडी लैंग्वेज और हाव-भाव के साथ अपने किरदार को इस तरह उकेरा कि वह दर्शकों के दिलों में एक बेबाक और मस्तमौला पुलिस अधिकारी के रूप में बस गए।

शिवाजी राव और सूरज सिंह के बीच के संवादों और तकरार के दृश्यों को शूट करते समय दोनों अभिनेताओं ने अपने व्यक्तिगत अभिनय कौशल का भरपूर इस्तेमाल किया। दोनों कलाकारों की एक साथ उपस्थिति ने उन दृश्यों को और भी असरदार बना दिया, जिसमें उनके विभिन्न विचार और व्यक्तित्व एक-दूसरे से टकराते हैं।

फिल्म का मुख्य कथानक

फिल्म तिरंगा की कहानी देशभक्ति, न्याय, और बदले के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म का मुख्य खलनायक पृथ्वी सिंह (अमरीश पुरी) है, जो एक कुटिल और भ्रष्ट नेता होता है। उसका उद्देश्य समाज में आतंक और अराजकता फैलाना होता है। पृथ्वी सिंह अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है, और वह इस कार्य में सफल होने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

ब्रिगेडियर सूरज सिंह, एक अनुभवी और बहादुर फौजी अधिकारी होते हैं, जिन्हें यह मिशन दिया जाता है कि वह पृथ्वी सिंह की साजिशों को नाकाम करें। लेकिन उन्हें यह महसूस होता है कि इस मिशन में उन्हें स्थानीय पुलिस की मदद की आवश्यकता है। यहीं पर इंस्पेक्टर शिवाजी राव वाघमारे की एंट्री होती है, जो अपनी निडरता और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं।

शिवाजी राव और सूरज सिंह का उद्देश्य एक ही होता है—देश को पृथ्वी सिंह जैसे दुश्मनों से बचाना। लेकिन दोनों के विचारों और काम करने के तरीकों में बहुत अंतर होता है। यही अंतर और आपसी टकराव ही फिल्म का एक अहम हिस्सा है। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे की काबिलियत को समझते हैं और एक-दूसरे का सम्मान करना शुरू करते हैं।

फिल्म के दिलचस्प संवाद

तिरंगा में राज कुमार और नाना पाटेकर के बीच के संवाद आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। राज कुमार के संवादों में जहां एक आदर्शवादी और विचारशील अंदाज था, वहीं नाना पाटेकर के संवादों में तेज-तर्रार और बेबाकी थी।

राज कुमार का एक प्रसिद्ध संवाद, “जानी, मैं वो तीर हूँ जो अपने निशाने से खुद ही कहता है, मुझे देख और भूल जा, पर मैं वहाँ जरूर पहुँचता हूँ,” आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे आइकॉनिक संवादों में से एक है।

वहीं, नाना पाटेकर का संवाद, “ये शिवाजी राव वाघमारे का स्टाइल है, और स्टाइल के मामले में शिवाजी राव किसी का बाप है,” ने दर्शकों को खूब हंसाया और किरदार को और भी यादगार बना दिया।

फिल्म की शूटिंग के दौरान की दिलचस्प घटनाएं

फिल्म तिरंगा के सेट पर नाना पाटेकर और राज कुमार के बीच एक गहरी आपसी समझ थी। दोनों ही अपने-अपने किरदारों में पूरी तरह से ढल चुके थे। एक बार, शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर और राज कुमार के बीच एक बहुत ही इंटेंस सीन फिल्माया जाना था। उस दृश्य में राज कुमार को नाना पाटेकर को फटकारना था, और नाना को गुस्से में जवाब देना था।

इस दृश्य को पूरी तरह से स्वाभाविक बनाने के लिए, राज कुमार ने नाना को सीधे-सीधे कुछ ताना दिया, जिससे नाना वास्तव में थोड़े भावुक हो गए और उन्होंने उस संवाद को गहरी भावनाओं के साथ व्यक्त किया। यह घटना बताती है कि दोनों कलाकार कितनी बारीकी से अपने किरदार में डूब चुके थे।

फिल्म का संदेश और समाज पर प्रभाव

तिरंगा का संदेश सीधा और स्पष्ट था: देश के दुश्मनों के खिलाफ हमें एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए, चाहे वे बाहरी दुश्मन हों या भीतर से समाज को खोखला कर रहे लोग। इस फिल्म ने न्याय, कर्तव्य और देशभक्ति के महत्व को बखूबी दिखाया। ब्रिगेडियर सूरज सिंह और इंस्पेक्टर शिवाजी राव वाघमारे जैसे किरदार भारतीय सिनेमा के लिए एक प्रेरणा बन गए।

फिल्म ने यह भी संदेश दिया कि हम चाहे किसी भी पद या पेशे में हों, अगर देश और समाज की रक्षा की बात हो तो हमें किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह फिल्म आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय है और देशभक्ति के भाव को जागृत करती है।

नाना पाटेकर और राज कुमार की जोड़ी का प्रभाव

तिरंगा में नाना पाटेकर और राज कुमार की जोड़ी ने दर्शकों पर गहरा असर डाला। यह पहली बार था जब इन दोनों महान कलाकारों को एक साथ पर्दे पर देखा गया। उनकी जोड़ी और उनके बीच की केमिस्ट्री ने इस फिल्म को खास बना दिया। राज कुमार के आदर्शवादी अंदाज और नाना पाटेकर की बेबाक शैली ने फिल्म को रोमांचक बना दिया और दर्शकों ने इसे बेहद पसंद किया।

फिल्म तिरंगा के बाद नाना पाटेकर और राज कुमार की जोड़ी को सिनेमा प्रेमियों ने सराहा। उनकी इस फिल्म ने न केवल उनकी फैन फॉलोइंग को बढ़ाया बल्कि उन्हें समाज में हीरो की तरह देखा जाने लगा।

तिरंगा में नाना पाटेकर और राज कुमार का अभिनय और उनका किरदार आज भी भारतीय सिनेमा के प्रशंसकों के दिलों में बसता है। यह फिल्म एक ऐसे उद्देश्य को दर्शाती है जो हर भारतीय के दिल के करीब है—देशभक्ति और समाज की रक्षा। फिल्म की दिलचस्प कहानी, दोनों कलाकारों के दमदार अभिनय और उनके यादगार संवादों ने इसे अमर बना दिया।

 

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