Nayak: जाने आखिर अनिल कपूर को फिल्म “नायक” में कैसे मिला रोल फिल्म की कुछ दिलचस्प कहानी

Nayak: जाने आखिर अनिल कपूर को फिल्म "नायक" में कैसे मिला रोल फिल्म की कुछ दिलचस्प कहानी

Nayak: फिल्म ‘नायक’ (2001) भारतीय सिनेमा की एक ऐसी फिल्म है, जिसने अपनी अनोखी कहानी, दमदार एक्शन, और सामाजिक संदेश के जरिए दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में नजर आए अनिल कपूर, जिन्होंने एक आम आदमी से एक दिन के मुख्यमंत्री बने शिवाजी राव की भूमिका निभाई। इस फिल्म ने न केवल अनिल कपूर के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया, बल्कि दर्शकों को भी एक ऐसे नायक की कहानी से रूबरू कराया, जो सत्ता के खिलाफ खड़ा होता है और भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोशिश करता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अनिल कपूर को फिल्म ‘नायक’ में कैसे चुना गया और इस फिल्म के पीछे की कुछ दिलचस्प कहानियाँ क्या हैं? आइए जानते हैं, फिल्म के सफर और अनिल कपूर की भूमिका को लेकर कुछ रोचक तथ्य।

Nayak: जाने आखिर अनिल कपूर को फिल्म "नायक" में कैसे मिला रोल फिल्म की कुछ दिलचस्प कहानी

फिल्म ‘नायक’ की पृष्ठभूमि

फिल्म ‘नायक’ का निर्देशन किया था एस. शंकर ने, जो कि तमिल और तेलुगु सिनेमा के मशहूर फिल्ममेकर हैं। इससे पहले उन्होंने ‘जेंटलमैन’, ‘इंडियन’ और ‘मुदलवन’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दी थीं। ‘नायक’ वास्तव में तमिल फिल्म ‘मुदलवन’ (1999) की हिंदी रीमेक थी। ‘मुदलवन’ को जबरदस्त सफलता मिली थी, जिसमें अरविंद स्वामी ने मुख्य भूमिका निभाई थी।

जब शंकर ने इसे हिंदी में रीमेक करने का सोचा, तो उन्हें एक ऐसा अभिनेता चाहिए था, जो शिवाजी राव जैसे किरदार को अपनी काबिलियत से जीवंत कर सके। यही कारण था कि उन्होंने बॉलीवुड के एक स्थापित और प्रतिभाशाली अभिनेता की तलाश की, और उनकी खोज खत्म हुई अनिल कपूर पर।

अनिल कपूर को ‘नायक’ में कैसे मिला रोल?

अनिल कपूर ने उस समय तक कई हिट फिल्मों में काम किया था और वह पहले से ही एक स्थापित अभिनेता थे। उनका चार्म, एक्टिंग स्किल्स और किसी भी किरदार में ढल जाने की क्षमता उन्हें बॉलीवुड के सबसे भरोसेमंद अभिनेताओं में से एक बनाती थी। जब शंकर ने ‘नायक’ के हिंदी रीमेक की योजना बनाई, तो उनके दिमाग में सबसे पहले अनिल कपूर का नाम आया।

शंकर को यकीन था कि अनिल कपूर शिवाजी राव के किरदार में फिट होंगे। इस किरदार की जरूरत थी कि एक ऐसा अभिनेता हो, जो पहले एक आम आदमी लगे, फिर जैसे ही वह मुख्यमंत्री बने, उसकी जिम्मेदारियों के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व में भी बदलाव नजर आए। अनिल कपूर के पास वह बहुमुखी प्रतिभा थी, जो इस किरदार की मांग को पूरा कर सकती थी।

जब शंकर ने अनिल कपूर को स्क्रिप्ट सुनाई, तो अनिल तुरंत ही इस फिल्म का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गए। उन्हें इस किरदार की कहानी और उसके संदेश ने गहराई से प्रभावित किया। शिवाजी राव का किरदार एक आम आदमी के संघर्ष, उसकी हिम्मत और उसके समाज के लिए किए गए बलिदान को दिखाता था, जो अनिल कपूर को बेहद आकर्षित करता था। अनिल कपूर को यह भी समझ में आ गया था कि यह फिल्म उनके करियर के लिए एक नई दिशा साबित हो सकती है।

शिवाजी राव का किरदार: आम आदमी से मुख्यमंत्री तक का सफर

फिल्म में अनिल कपूर ने शिवाजी राव का किरदार निभाया, जो एक साधारण टीवी रिपोर्टर होता है। उसे एक दिन के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलता है, जब सत्ताधारी मुख्यमंत्री, बलराज चौहान (जिसे अमरीश पुरी ने निभाया) उसे चैलेंज करता है। शिवाजी राव यह चुनौती स्वीकार करता है और अपने एक दिन के कार्यकाल में भ्रष्टाचार, अपराध, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई छेड़ता है।

अनिल कपूर ने शिवाजी राव के किरदार को बेहद बारीकी से निभाया। पहले आधे हिस्से में उन्होंने एक रिपोर्टर के रूप में अपनी सादगी और ईमानदारी को पेश किया, जबकि दूसरे हिस्से में मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके अंदर का जोश, गुस्सा और समाज के लिए कुछ करने की तड़प साफ नजर आई। अनिल कपूर की यह बहुमुखी प्रतिभा इस किरदार को यादगार बनाने में बेहद मददगार साबित हुई।

फिल्म की चुनौतियाँ और दिलचस्प बातें

शूटिंग के दौरान समस्याएं: फिल्म ‘नायक’ के कुछ एक्शन सीक्वेंस बेहद चुनौतीपूर्ण थे। खासकर जब अनिल कपूर को कई बार एक्शन सीन्स में खुद को साबित करना पड़ता था। फिल्म के सबसे यादगार सीन्स में से एक था जब अनिल कपूर भ्रष्ट अधिकारियों पर बुलडोज़र चलाने का आदेश देते हैं। इस सीक्वेंस की शूटिंग के दौरान उन्हें वास्तविक बुलडोजर से काम करना पड़ा, जो कि काफी कठिन और खतरनाक था।

अमरीश पुरी के साथ की केमिस्ट्री: फिल्म में अनिल कपूर और अमरीश पुरी के बीच की केमिस्ट्री बेहद दमदार थी। अमरीश पुरी, जो फिल्म में एक भ्रष्ट और चालाक मुख्यमंत्री का किरदार निभाते हैं, का सामना अनिल कपूर के साथ होना फिल्म के मुख्य आकर्षण में से एक था। दोनों कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया और एक-दूसरे को कॉम्प्लिमेंट किया। अमरीश पुरी के दमदार डायलॉग्स और अनिल कपूर के जवाबी तर्कों ने फिल्म को और भी शानदार बना दिया।

शंकर का निर्देशन: फिल्म के निर्देशक शंकर अपने भव्य सेट्स और विशिष्ट शैली के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ‘नायक’ में भी यही चीजें दिखाई। फिल्म के एक्शन और ड्रामा को उन्होंने बड़े ही शानदार तरीके से पेश किया। फिल्म की कहानी में सामाजिक मुद्दों को भी बखूबी उठाया गया, और शंकर ने यह सुनिश्चित किया कि यह फिल्म सिर्फ एक एंटरटेनमेंट फिल्म बनकर न रह जाए, बल्कि इसका एक गहरा संदेश भी हो।

फिल्म की सफलता और प्रभाव

फिल्म ‘नायक’ बॉक्स ऑफिस पर तो अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर सकी, लेकिन समय के साथ इस फिल्म ने अपनी खास जगह बनाई। फिल्म का सामाजिक संदेश और अनिल कपूर का सशक्त अभिनय इसे हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक फिल्मों में शामिल करता है।

फिल्म की कहानी ने यह सवाल उठाया कि अगर एक आम आदमी को सत्ता मिले, तो वह भ्रष्टाचार और अन्य समस्याओं से कैसे निपटेगा। यह फिल्म आज भी एक प्रेरणा के रूप में देखी जाती है, खासकर उन लोगों के लिए जो सिस्टम के खिलाफ खड़े होकर समाज में बदलाव लाना चाहते हैं।

अनिल कपूर के करियर पर ‘नायक’ का प्रभाव

नायक’ ने अनिल कपूर के करियर में एक नया आयाम जोड़ा। इस फिल्म के बाद उन्हें न केवल एक एक्शन हीरो के रूप में पहचाना गया, बल्कि एक ऐसे अभिनेता के रूप में भी देखा गया, जो समाज से जुड़े मुद्दों पर आधारित फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ सकते हैं।

इस फिल्म में अनिल कपूर ने दिखा दिया कि वे किसी भी तरह के किरदार को बड़ी सहजता से निभा सकते हैं। शिवाजी राव का किरदार एक आम आदमी का था, जो परिस्थितियों के चलते एक असाधारण व्यक्ति बन जाता है। इस किरदार ने न केवल अनिल कपूर के फैंस को प्रभावित किया, बल्कि आलोचकों ने भी उनके अभिनय की भरपूर प्रशंसा की।

फिल्म के यादगार डायलॉग्स और दृश्य

नायक’ का सबसे यादगार हिस्सा इसके दमदार डायलॉग्स और दृश्य थे। फिल्म का एक संवाद, “जो सत्ता में होता है, वही देश को बदल सकता है,” अनिल कपूर के किरदार की सच्चाई को दिखाता है।

इसके अलावा, फिल्म में अनिल कपूर का मुख्यमंत्री बनने के बाद के एक्शन सीक्वेंस, जब वह भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हैं, दर्शकों को बेहद पसंद आया। इन दृश्यों ने दर्शकों के मन में यह सवाल भी उठाया कि क्या वास्तव में एक दिन में व्यवस्था को बदला जा सकता है?

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