Khalnayak: 1993 में रिलीज़ हुई सुभाष घई की फ़िल्म “खलनायक” भारतीय सिनेमा की एक यादगार फिल्म है, जिसमें संजय दत्त ने “बल्लू” का यादगार किरदार निभाया था। इस फिल्म में उनकी एक्टिंग ने उन्हें न सिर्फ़ दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया, बल्कि उनका फिल्मी करियर भी एक नई ऊंचाई पर पहुँच गया। परंतु यह सवाल अक्सर उठता है कि आख़िर संजय दत्त को इस फिल्म में “खलनायक” का रोल कैसे मिला? इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है, जो उनके निजी और पेशेवर जीवन से भी गहराई से जुड़ी हुई है।
फिल्म की शुरुआत और सुभाष घई की तलाश
सुभाष घई, जो पहले से ही “कर्मा”, “हीरो” और “राम लखन” जैसी हिट फिल्मों के निर्देशक रह चुके थे, एक नई फिल्म बनाने की सोच रहे थे, जिसमें एक अनोखा और दमदार खलनायक का किरदार हो। वे चाहते थे कि इस किरदार में एक ऐसी पर्सनालिटी हो, जो दर्शकों के मन में डर और सहानुभूति दोनों पैदा कर सके। इसके लिए वे एक ऐसे अभिनेता की तलाश में थे, जो इस भूमिका को बेहतरीन तरीके से निभा सके।
घई ने पहले इस किरदार के लिए जैकी श्रॉफ और शाहरुख़ ख़ान जैसे स्टार्स पर भी विचार किया था, परंतु उन्हें ऐसा कोई नहीं मिल रहा था जो बल्लू के किरदार में फिट बैठ सके। इसी दौरान संजय दत्त का नाम सामने आया।
संजय दत्त की छवि
1990 के दशक की शुरुआत में संजय दत्त की छवि बॉलीवुड में एक “बुरा लड़का” की तरह बन चुकी थी। उनकी निजी जिंदगी में समस्याएं चल रही थीं, और वे कई विवादों में फंसे हुए थे। उनके पिता सुनील दत्त भी उनके जीवन में चल रहे संघर्षों से काफी चिंतित थे। इन सब के बीच, संजय का फिल्मी करियर भी प्रभावित हो रहा था। परंतु उनकी पिछली फिल्मों जैसे “साजन” और “थानेदार” ने उन्हें एक दमदार अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया था। उनकी कद-काठी, दमदार आवाज़, और गंभीर व्यक्तित्व ने उन्हें उस समय के अन्य अभिनेताओं से अलग बनाया था।
सुभाष घई ने जब संजय को बल्लू के किरदार के लिए सोचा, तो उन्हें तुरंत एहसास हुआ कि यह रोल उनके लिए ही बना है। बल्लू एक ऐसा खलनायक था, जिसे दर्शक नफरत भी करते थे और अंत में उससे सहानुभूति भी रखते थे। संजय दत्त की पर्सनालिटी इस ड्यूलिटी को बेहतरीन तरीके से दर्शा सकती थी।
“खलनायक” का प्रस्ताव और संजय दत्त का फैसला
संजय दत्त पहले इस रोल को करने में थोड़ा हिचकिचा रहे थे, क्योंकि फिल्म का शीर्षक ही “खलनायक” था और वे पहले से ही एक विवादित शख्सियत के रूप में जाने जाते थे। संजय को डर था कि फिल्म में खलनायक का रोल करने से उनकी छवि और भी नकारात्मक हो सकती है। लेकिन सुभाष घई ने उन्हें विश्वास दिलाया कि फिल्म में बल्लू का किरदार सिर्फ़ खलनायक नहीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति है जिसकी अपनी कहानी और भावनाएं हैं। घई ने संजय को बताया कि इस किरदार में अभिनय की बहुत गहराई है और यह एक चुनौतीपूर्ण रोल होगा।
संजय दत्त ने अंततः इस रोल को स्वीकार कर लिया। उन्होंने सोचा कि इस फिल्म के जरिए वे अपने अभिनय को एक नई दिशा दे सकते हैं। और उनके इस फैसले ने न सिर्फ़ फिल्म की सफलता में अहम भूमिका निभाई, बल्कि उनका खुद का करियर भी नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया।
शूटिंग के दौरान की चुनौतियां
“खलनायक” की शूटिंग के दौरान संजय दत्त कई व्यक्तिगत समस्याओं से भी जूझ रहे थे। उनके खिलाफ कुछ कानूनी मामले चल रहे थे, और वे मानसिक रूप से तनाव में थे। इसके बावजूद उन्होंने शूटिंग के दौरान अपने काम में कोई कमी नहीं आने दी। वे पूरी मेहनत और ईमानदारी से अपना किरदार निभा रहे थे।
फिल्म की शूटिंग के दौरान संजय दत्त के प्रदर्शन ने सुभाष घई को प्रभावित कर दिया। उन्होंने बल्लू के किरदार में वह सारी भावनाएं और गहराई डाली, जिसकी फिल्म को जरूरत थी। खासकर फिल्म के कुछ अहम सीन, जैसे कि बल्लू और माधुरी दीक्षित के किरदार के बीच के इमोशनल सीन, ने दर्शकों के दिलों को छू लिया।
फिल्म का संगीत और “चोली के पीछे”
“खलनायक” का सिर्फ़ अभिनय ही नहीं, बल्कि इसका संगीत भी फिल्म की सफलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध इस फिल्म के गाने उस समय बेहद लोकप्रिय हुए थे। “चोली के पीछे क्या है” गाना तो एक तरह से विवाद का केंद्र बन गया था, लेकिन इसकी वजह से फिल्म को और भी प्रचार मिला।
इस गाने को लेकर कई सवाल उठाए गए थे, परंतु माधुरी दीक्षित और संजय दत्त की जोड़ी ने इसे बड़ी खूबसूरती से निभाया। संजय दत्त ने बल्लू के किरदार में गाने के दौरान भी अपनी आक्रामकता और सेंसुअलिटी को दर्शाया, जो किरदार के अनुसार सही था।
फिल्म की सफलता
जब “खलनायक” रिलीज़ हुई, तो यह बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा गई। संजय दत्त का बल्लू का किरदार एक आइकॉनिक किरदार बन गया। दर्शकों ने फिल्म को खूब पसंद किया, और संजय के अभिनय की खूब तारीफ की गई। इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक के रूप में स्थापित कर दिया।
हालांकि, संजय दत्त के खिलाफ चल रहे कानूनी मामले और उनकी गिरफ्तारी के बाद फिल्म को और भी विवादों का सामना करना पड़ा। लेकिन इन सब के बावजूद, “खलनायक” एक यादगार फिल्म बनी रही। फिल्म ने न सिर्फ़ बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई, बल्कि संजय दत्त को खलनायक के तौर पर भी एक नया पहचान दी।
संजय दत्त की निजी ज़िंदगी पर प्रभाव
“खलनायक” की रिलीज़ के बाद संजय दत्त की निजी ज़िंदगी में भी कई बदलाव आए। वे कानूनी मामलों के चलते मुश्किलों में थे, लेकिन फिल्म की सफलता ने उन्हें मानसिक और आर्थिक तौर पर मजबूती दी। इस फिल्म के बाद उनकी पॉपुलैरिटी और भी बढ़ गई, और लोग उन्हें एक सशक्त अभिनेता के रूप में देखने लगे।
संजय दत्त के करियर के लिए यह फिल्म एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई। उनके खलनायक बनने का सफर न सिर्फ़ एक फिल्मी कहानी थी, बल्कि उनके जीवन की एक सच्चाई भी थी। फिल्म “खलनायक” ने न सिर्फ़ उनके फिल्मी करियर को नया मोड़ दिया, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन को भी एक दिशा दी।