‘Sadma ‘ हिंदी सिनेमा की एक अनमोल फिल्म है जिसे आज भी लोग याद करते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ये फिल्म असल में 1982 में आई तमिल फिल्म Moondram Pirai का रीमेक थी। इस तमिल फिल्म में भी श्रीदेवी ही लीड रोल में थीं। फिल्म के निर्देशक बालू महेन्द्रा ने जब इस कहानी को हिंदी में लाने की सोची, तो उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था — उन्होंने श्रीदेवी को ही दोबारा यह रोल ऑफर किया।
श्रीदेवी के अभिनय से निर्देशक हुए थे प्रभावित
बालू महेन्द्रा, जो इस फिल्म के निर्देशक थे, उन्हें श्रीदेवी की मासूमियत और भावनात्मक गहराई बेहद पसंद थी। Moondram Pirai की शूटिंग के दौरान ही उन्होंने तय कर लिया था कि अगर वे इसे कभी हिंदी में बनाएंगे, तो सिर्फ श्रीदेवी को ही लेंगे। श्रीदेवी ने जिस तरह से एक मानसिक रूप से बचपन में फंसी लड़की का किरदार निभाया था, वह किसी भी अभिनेत्री के लिए चुनौतीपूर्ण था। लेकिन श्रीदेवी ने उस भूमिका को इतनी सच्चाई से निभाया कि दर्शक रो पड़े।
कमल हासन और श्रीदेवी की जोड़ी ने जीता दिल
फिल्म में कमल हासन भी थे जो उस समय साउथ में सुपरस्टार थे। हिंदी सिनेमा के दर्शकों के लिए यह जोड़ी नई थी लेकिन इन दोनों की केमिस्ट्री ने फिल्म को एक अलग ऊंचाई दी। कमल हासन ने एक स्कूल टीचर का किरदार निभाया जो एक ऐसी लड़की की देखभाल करता है जो एक दुर्घटना के बाद अपनी मानसिक अवस्था खो चुकी होती है। दोनों कलाकारों के बीच की मासूम दोस्ती, भावनात्मक जुड़ाव और अंत का करुण दृश्य आज भी क्लासिक माने जाते हैं।
‘सदमा’ के रोल से श्रीदेवी को मिली अलग पहचान
हालांकि श्रीदेवी ने इससे पहले भी कई फिल्में की थीं, लेकिन ‘सदमा’ ने उन्हें एक गंभीर अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह उनका एक टर्निंग प्वाइंट बन गया। फिल्म की समीक्षकों ने खूब तारीफ की और श्रीदेवी को उनके दमदार अभिनय के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड नॉमिनेशन भी मिला। खास बात ये थी कि श्रीदेवी को उस समय हिंदी ठीक से नहीं आती थी लेकिन उन्होंने हर सीन को इतनी शिद्दत से निभाया कि भाषा कोई रुकावट नहीं बनी।
एक करुण अंत जिसने लोगों को रुला दिया
फिल्म का सबसे यादगार हिस्सा उसका अंत था, जब श्रीदेवी की याददाश्त वापस आ जाती है लेकिन वो कमल हासन को पहचानती तक नहीं। कमल हासन का स्टेशन पर दौड़ता हुआ सीन और उसकी आंखों का दर्द आज भी हर फिल्म प्रेमी के दिल को छू जाता है। इस फिल्म ने दिखाया कि बिना मेलोड्रामा के भी इमोशन कितनी गहराई से दिखाया जा सकता है। यह फिल्म भले ही उस समय बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट न रही हो, लेकिन समय के साथ यह एक कल्ट क्लासिक बन गई।