फिल्म ‘Safar’ में Rajesh Khanna को कैसे मिला रोल? जानिए फिल्म के कुछ दिलचस्प किस्से

फिल्म ‘Safar’ में Rajesh Khanna को कैसे मिला रोल? जानिए फिल्म के कुछ दिलचस्प किस्से

1970 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘Safar’ को हिन्दी सिनेमा की सबसे भावनात्मक और गहराई भरी फिल्मों में गिना जाता है। इसे असित सेन ने निर्देशित किया था और इसकी कहानी प्रसिद्ध बंगाली लेखक आशुतोष मुखर्जी के उपन्यास पर आधारित थी। इस फिल्म में राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर, फिरोज़ खान और अशोक कुमार जैसे दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया था। यह फिल्म उस समय की 17 सुपरहिट फिल्मों में से एक थी जो राजेश खन्ना ने 1969 से 1971 के बीच दी थीं।

राजेश खन्ना को कैसे मिला अविनाश का किरदार

जब इस फिल्म की कहानी पर काम हो रहा था तो निर्देशक असित सेन को एक ऐसे अभिनेता की तलाश थी जो गंभीर और संवेदनशील किरदार को पूरी गहराई से निभा सके। अविनाश एक ऐसा युवा था जो अपनी बीमारी के कारण जिंदगी से हार मान चुका होता है लेकिन दूसरों की खुशी के लिए अपनी पीड़ा को छुपा लेता है। असित सेन ने कई नामों पर विचार किया लेकिन अंत में राजेश खन्ना को चुना क्योंकि वे सिर्फ रोमांटिक हीरो नहीं बल्कि एक गंभीर अभिनेता भी थे। स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद राजेश खन्ना खुद इस किरदार से इतने जुड़ गए कि उन्होंने तुरंत फिल्म के लिए हां कर दी।

कहानी में छिपा दर्द और त्याग

फिल्म की कहानी एक सर्जन डॉ. नीला (शर्मिला टैगोर) से शुरू होती है जो एक मरीज को बचाने की कोशिश में असफल रहती है। इसके बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है और नीला और अविनाश की मुलाकात से शुरू होती है। अविनाश एक मेडिकल छात्र होता है जो साथ में पेंटिंग भी करता है। वह नीला से प्रेम करता है लेकिन कभी अपने दिल की बात नहीं कहता। उसकी चुप्पी की वजह गरीबी नहीं बल्कि उसकी लाइलाज बीमारी कैंसर होती है।

त्रासदी और गलतफहमियों का मोड़

नीला आर्थिक मजबूरियों के चलते अमीर व्यापारी शेखर (फिरोज़ खान) के घर पढ़ाने जाती है और बाद में उससे शादी कर लेती है। शादी के बाद शेखर को नीला के व्यवहार में अजीब दूरी महसूस होती है। जब उसे अविनाश का एक प्रेम पत्र मिलता है जो मजाक में लिखा गया था तो वह आत्महत्या कर लेता है। नीला को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया जाता है लेकिन अदालत में सच्चाई सामने आती है और वह बरी हो जाती है।

अंत में एक प्रेरणादायक संदेश

अविनाश वापस लौटता है लेकिन तब तक उसकी हालत बेहद खराब हो चुकी होती है और वह अस्पताल में दम तोड़ देता है। नीला पूरी तरह टूट जाती है लेकिन डॉ. चन्द्रा उसे समझाते हैं कि जीवन रुकता नहीं है। वह अपना जीवन चिकित्सा सेवा को समर्पित कर देती है और समाज सेवा में लग जाती है।

फिल्म की अमर छाप

‘सफर’ एक प्रेम त्रिकोण से कहीं ज्यादा एक भावनात्मक और इंसानियत से भरी फिल्म थी। इसमें दर्द था त्याग था और एक ऐसा संदेश था जो दिल को छू जाए। इसका गाना ‘ज़िंदगी का सफर’ आज भी लोगों के ज़ेहन में ताजा है। यही वजह है कि यह फिल्म आज भी याद की जाती है।

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