HINDI STORY: बहुत समय पहले, भारत में कई छोटे-छोटे राज्य हुआ करते थे, जिनके अलग-अलग राजा और रानियाँ हुआ करती थीं। इन्हीं में से एक राज्य था ‘राजगढ़’, जिसका राजा पृथ्वीराज और रानी अदिति अपने साहस, बुद्धिमत्ता और प्रजा-प्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। यह कहानी उनके संघर्ष, बलिदान और प्रेम की है, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।
प्रारंभिक दौर
राजा पृथ्वीराज राजगढ़ के एक लोकप्रिय और वीर राजा थे। उनकी बहादुरी की चर्चा दूर-दूर तक फैली हुई थी। वह हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के लिए कार्य करते थे और राज्य को समृद्ध बनाना उनका मुख्य लक्ष्य था। दूसरी ओर, रानी अदिति एक बुद्धिमान और दिलदार महिला थीं, जो राजमहल के हर फैसले में अपने पति का साथ देती थीं। उन्होंने न केवल राजमहल की ज़िम्मेदारियाँ बखूबी संभालीं, बल्कि युद्धनीति और राजनीति में भी उनकी सलाह राजा के लिए महत्वपूर्ण थी।
राज्य में शांति
राजगढ़ में लंबे समय तक शांति और समृद्धि का माहौल रहा। राजा पृथ्वीराज ने अपनी कुशल नीति और रानी अदिति की सहायता से राज्य में सुख-शांति को बनाए रखा। उन्होंने किसानों के लिए सिंचाई की बेहतर व्यवस्था की, जिससे खेती में उन्नति हुई। व्यापार को भी बढ़ावा दिया गया, जिससे राजकोष में धन आने लगा। प्रजा राजा और रानी के प्रति बेहद निष्ठावान थी और उनका सम्मान करती थी।
रानी अदिति ने राज्य में महिलाओं के अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए विद्यालय खुलवाए और उन्हें सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएँ चलाईं। उनका मानना था कि राज्य तभी प्रगति कर सकता है, जब उसमें सभी वर्गों का समान योगदान हो।
संकट की घड़ी
सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, राजगढ़ के पड़ोसी राज्य ‘मलयगढ़’ के राजा विक्रमसेन की नजर राजगढ़ पर पड़ी। विक्रमसेन एक क्रूर और लालची राजा था, जो हर राज्य को अपने अधीन करना चाहता था। राजगढ़ की समृद्धि देखकर उसकी लालच बढ़ गई और उसने राजगढ़ पर आक्रमण की योजना बनाई।
विक्रमसेन ने अपने शक्तिशाली सैनिकों की फौज के साथ राजगढ़ पर अचानक हमला कर दिया। इस हमले से पूरा राज्य हिल गया। राजा पृथ्वीराज को इस हमले का अंदेशा नहीं था, लेकिन उन्होंने तुरंत अपनी सेना को तैयार किया और दुश्मनों का सामना करने के लिए युद्धभूमि की ओर कूच किया।
युद्ध का सामना
राजा पृथ्वीराज ने बड़ी वीरता से विक्रमसेन की सेना का सामना किया, लेकिन मलयगढ़ की सेना अधिक शक्तिशाली थी। युद्ध में राजगढ़ की सेना को काफी नुकसान हुआ, और राजा पृथ्वीराज भी घायल हो गए। यह देखकर रानी अदिति ने एक साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने युद्ध के मैदान में उतरने का निश्चय किया।
रानी अदिति न केवल एक कुशल राजनीतिज्ञ थीं, बल्कि युद्ध कला में भी निपुण थीं। उन्होंने महिला योद्धाओं की एक सेना बनाई और युद्ध में अपने पति का साथ दिया। रानी की बहादुरी देखकर राज्य की अन्य महिलाओं ने भी हथियार उठा लिए और युद्ध में हिस्सा लिया। अदिति के नेतृत्व में महिला योद्धाओं ने दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया और विक्रमसेन की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
बलिदान और विजय
लेकिन युद्ध की यह जीत अस्थायी थी। विक्रमसेन ने एक नई योजना बनाई और छल से राजमहल पर कब्जा करने की कोशिश की। इस बार वह राजा पृथ्वीराज और रानी अदिति को बंदी बनाने में सफल हो गया। विक्रमसेन ने राजा से कहा, “अगर तुम अपना राज्य मुझे सौंप दो, तो मैं तुम्हारी जान बख्श दूँगा।” लेकिन पृथ्वीराज ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।
रानी अदिति ने भी अपने राज्य और प्रजा की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह नहीं की। उन्होंने विक्रमसेन से कहा, “तुम हमें मार सकते हो, लेकिन हमारे राज्य और हमारी प्रजा को गुलाम नहीं बना सकते।” यह सुनकर विक्रमसेन क्रोधित हो गया और उसने दोनों को मारने की धमकी दी।
लेकिन तभी राजगढ़ के सेनापति और प्रजा ने मिलकर विक्रमसेन की सेना पर धावा बोल दिया। रानी अदिति और राजा पृथ्वीराज ने अपने अंतिम क्षणों तक युद्ध किया और अंततः विक्रमसेन की सेना को हराया गया। हालांकि इस युद्ध में राजा और रानी दोनों वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन उन्होंने अपने राज्य को गुलामी से बचा लिया।
विरासत
राजा पृथ्वीराज और रानी अदिति का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनके साहस और बलिदान की गाथाएँ सदियों तक गाई गईं। उनकी कहानी ने लोगों को यह सिखाया कि आत्म-सम्मान और देशप्रेम के लिए किसी भी तरह के बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। उनके बाद उनके बेटे ने राज्य की बागडोर संभाली और उनके सिद्धांतों पर चलते हुए राज्य को आगे बढ़ाया।
राजगढ़ में आज भी उनके नाम पर मंदिर और स्मारक बने हुए हैं। उनकी याद में हर साल एक विशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग उनकी वीरता और त्याग को याद करते हैं। रानी अदिति का नाम विशेष रूप से महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में लिया जाता है, क्योंकि उन्होंने यह दिखाया कि महिलाएँ केवल घर की ही जिम्मेदारी नहीं संभालतीं, बल्कि वे युद्ध के मैदान में भी अपने साहस का परिचय दे सकती हैं।