Hindi Stories: शीतलपुर गाँव में एक छोटी सी झोपड़ी में रहने वाला परिवार—रामलाल, उसकी पत्नी गायत्री, और उनके दो बच्चे—रवि और रानी—अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे थे। रामलाल एक मेहनती किसान था, लेकिन कुछ साल पहले उसकी ज़िंदगी में एक ऐसी आदत ने घर कर लिया, जिसने परिवार की खुशियों को छीन लिया। वह आदत थी नशे की।
शुरुआत में, रामलाल दिन भर खेतों में मेहनत करता और शाम को थकान मिटाने के बहाने शराब पीने लगा। धीरे-धीरे यह आदत बढ़ती गई और रामलाल की ज़िंदगी का हिस्सा बन गई। पहले वह केवल खास मौकों पर पीता था, लेकिन अब यह उसका रोज़ का रूटीन बन गया था। घर लौटने पर वह अक्सर नशे में धुत होता, और छोटी-छोटी बातों पर गायत्री और बच्चों पर चिल्लाने लगता।
गायत्री, जो एक संस्कारी और धैर्यवान औरत थी, इस सब को सहन करने की कोशिश करती रही। वह अपने बच्चों के लिए एक सुखी और शांतिपूर्ण घर का सपना देखती थी, लेकिन रामलाल के नशे की आदत ने सब कुछ बर्बाद कर दिया था। गायत्री को न केवल अपने बच्चों की परवरिश करनी थी, बल्कि उसे रामलाल के गुस्से और बदतमीजी का भी सामना करना पड़ता था।
रवि और रानी भी अपने पिता की इस आदत से बहुत परेशान थे। उन्हें अक्सर अपने दोस्तों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता, जब उनके पिता शराब के नशे में धुत होकर घर लौटते। वे दोनों अपनी मां को रोते हुए देखते और उन्हें समझ नहीं आता कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए।
गायत्री ने कई बार रामलाल को समझाने की कोशिश की। उसने उसे प्यार से कहा, “रामलाल, हमारे बच्चों की खातिर नशा छोड़ दो। देखो, यह आदत न सिर्फ तुम्हारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि हमारे परिवार की खुशियों को भी निगल रही है।”
लेकिन रामलाल पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ। नशे की लत ने उसकी सोचने-समझने की शक्ति को कुंद कर दिया था। वह गायत्री की बातों को अनसुना कर देता और अपने नशे में डूबा रहता।
एक दिन, गायत्री की सहनशक्ति का बांध टूट गया। वह बहुत निराश और टूट चुकी थी। उसने सोचा, “अब क्या किया जाए? मेरे बच्चों का भविष्य अंधकार में डूबता जा रहा है। रामलाल को इस दलदल से निकालना होगा, लेकिन कैसे?”
गायत्री ने गांव के बुजुर्ग और समझदार लोगों से सलाह लेने का फैसला किया। वह गांव के मुखिया के पास गई और अपनी समस्या को विस्तार से बताया। मुखिया ने ध्यानपूर्वक सुना और कहा, “गायत्री, तुम्हारा दर्द समझ सकता हूं। रामलाल को नशे की लत से बाहर निकालने के लिए हमें उसे यह एहसास दिलाना होगा कि वह क्या खो रहा है। हमें उसे उसके परिवार की अहमियत का अहसास कराना होगा।”
मुखिया के कहने पर गायत्री ने कुछ दिनों के लिए बच्चों को अपने मायके भेजने का फैसला किया। उसने रामलाल से कहा, “मैं कुछ दिनों के लिए मायके जा रही हूं और बच्चों को भी साथ ले जा रही हूं। तुम अपनी ज़िंदगी जीने के लिए आज़ाद हो, लेकिन याद रखना, तुम्हारे बच्चे और मैं तुम्हारी इन हरकतों से बहुत दुखी हैं।”
रामलाल ने पहले तो गायत्री की बात को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन जब उसने घर में सन्नाटा और अकेलापन महसूस किया, तो उसे अपनी गलती का अहसास होने लगा। उसे महसूस हुआ कि उसके नशे की लत ने उसके परिवार को उससे दूर कर दिया है। घर में अब न बच्चों की हंसी थी, न गायत्री का प्यार भरा साथ।
अकेलापन और पछतावे ने रामलाल को अंदर से झकझोर दिया। उसे याद आया कि कैसे पहले वह अपने बच्चों के साथ खेलता था, गायत्री के साथ हंसता-बोलता था, और उसकी छोटी-छोटी खुशियां ही उसकी दुनिया थी। अब वह सब कुछ खो चुका था, और इसके लिए वह खुद को जिम्मेदार मानता था।
कुछ दिनों के बाद, रामलाल ने एक बड़ा फैसला लिया। उसने ठान लिया कि वह अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाएगा और नशे की इस लत से छुटकारा पाएगा। उसने अपने अंदर की सारी हिम्मत जुटाई और गायत्री से माफी मांगने का फैसला किया।
रामलाल मायके जाकर गायत्री और बच्चों के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसकी आँखों में आँसू थे, और उसने कहा, “गायत्री, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें और बच्चों को बहुत दुख पहुंचाया है। मुझे अब अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं वादा करता हूं कि अब से कभी शराब नहीं छुऊंगा। बस तुम मुझे एक और मौका दो।”
गायत्री ने रामलाल की आंखों में पश्चाताप देखा। वह जानती थी कि नशे की लत को छोड़ना आसान नहीं होगा, लेकिन वह रामलाल को इस कठिन दौर से बाहर निकालने में उसकी मदद करने का मन बना चुकी थी। उसने रामलाल को माफ कर दिया और उसे समझाया, “रामलाल, मैं तुम्हारे साथ हूं, लेकिन याद रखना कि यह रास्ता कठिन है। तुम्हें अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से इस लत को हराना होगा। हम सब तुम्हारे साथ हैं।”
रामलाल ने अपने आप को नशे से दूर रखने के लिए गांव के मुखिया से भी मदद मांगी। मुखिया ने उसे एक अच्छे डॉक्टर से मिलवाया, जिसने रामलाल को नशा मुक्ति के लिए इलाज और सलाह दी। रामलाल ने खुद को गांव के कार्यों में व्यस्त रखा और धीरे-धीरे नशे की लत से बाहर आने की कोशिश करने लगा।
गायत्री ने भी रामलाल को इस दौरान बहुत सहारा दिया। उसने घर का माहौल खुशनुमा बनाया और बच्चों के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया। रवि और रानी भी अपने पिता की इस कोशिश को देखकर खुश थे और उन्हें फिर से अपनी जिंदगी में पाकर संतोष महसूस कर रहे थे।
कई महीनों की कड़ी मेहनत और धैर्य के बाद, रामलाल ने अपनी नशे की लत से पूरी तरह से छुटकारा पा लिया। उसने अपने जीवन को फिर से खुशहाल और सामान्य बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया। अब वह एक बदले हुए इंसान के रूप में अपने परिवार के साथ था।
गायत्री ने अपने पति के इस परिवर्तन पर गर्व महसूस किया और उसे अपनी सहनशीलता और धैर्य का फल मिला। रामलाल ने यह सीखा कि परिवार की खुशियों से बढ़कर कुछ नहीं है और नशा केवल दुःख और बर्बादी की ओर ले जाता है।
इस तरह, रामलाल और गायत्री का परिवार फिर से खुशियों से भर गया। बच्चों की हंसी फिर से घर में गूंजने लगी, और रामलाल ने अपनी गलतियों से सबक लेकर एक नई और बेहतर ज़िंदगी जीने की राह पकड़ ली।
समाप्त