Amitabh Bachchan and Sholay: बॉलीवुड की दुनिया में कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो सिर्फ मनोरंजन नहीं देतीं, बल्कि इतिहास रचती हैं। ऐसी ही एक फिल्म है “शोले” (1975)। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने न केवल भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी, बल्कि अमिताभ बच्चन को भी एक ऐसा मुकाम दिया जहां से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शोले में अमिताभ बच्चन को “जय” का किरदार कैसे मिला, इसकी कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। यह कहानी न केवल संघर्ष, धैर्य, और किस्मत की गहरी झलक दिखाती है, बल्कि बॉलीवुड में अमिताभ की जगह कैसे पक्की हुई, इसका भी सबूत है।
संघर्ष का दौर और अमिताभ का शुरुआती करियर
1970 के दशक की शुरुआत में अमिताभ बच्चन का फिल्मी करियर किसी भी अन्य नवोदित अभिनेता की तरह था – संघर्ष से भरा हुआ। हालांकि, उन्होंने 1969 में फिल्म “सात हिंदुस्तानी” से बॉलीवुड में कदम रखा, लेकिन यह फिल्म उन्हें उस तरह की पहचान नहीं दिला पाई जिसकी उन्हें जरूरत थी। अमिताभ का कद लंबा था, आवाज भारी थी, लेकिन वह दर्शकों का दिल जीतने में नाकाम हो रहे थे। फिल्मों में उन्हें छोटे-छोटे रोल मिलते, पर कोई खास सफलता नहीं मिल रही थी।
अमिताभ की कुछ शुरुआती फिल्में जैसे “आनंद” (1971) में उनके अभिनय को सराहा गया, लेकिन उन्हें “एंग्री यंग मैन” की पहचान फिल्म “जंजीर” (1973) से मिली। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे खुद को बॉलीवुड के एक प्रमुख अभिनेता के रूप में स्थापित करना शुरू किया, लेकिन तब भी उन्हें लगातार संघर्ष का सामना करना पड़ रहा था।
“शोले” का निर्माण और कास्टिंग प्रक्रिया
रमेश सिप्पी, जो पहले से ही कुछ सफल फिल्मों का निर्देशन कर चुके थे, 1973 में एक बड़े प्रोजेक्ट की योजना बना रहे थे। यह प्रोजेक्ट था “शोले”, जो एक मल्टी-स्टारर फिल्म होने वाली थी। शोले की कहानी लेखक जोड़ी सलीम-जावेद ने लिखी थी, और इसे भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी एक्शन-एडवेंचर फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया जाना था।
फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार थी, और अब बारी थी इसके किरदारों के लिए सही अभिनेताओं की तलाश की। फिल्म के दो मुख्य पात्र थे वीरू और जय, जो कहानी के केंद्र में थे। वीरू के किरदार के लिए धर्मेंद्र का नाम पहले से तय हो चुका था, क्योंकि वह उस समय के सबसे प्रमुख और लोकप्रिय अभिनेता थे। लेकिन जय के किरदार के लिए सही अभिनेता की तलाश अभी बाकी थी।
अमिताभ बच्चन की कास्टिंग: एक संघर्षपूर्ण राह
अमिताभ बच्चन उस समय बॉलीवुड में एक उभरते हुए अभिनेता थे, लेकिन उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर वैसा जादू नहीं चला पा रही थीं जैसा धर्मेंद्र या राजेश खन्ना की फिल्में कर रही थीं। फिर भी, अमिताभ को यह अहसास था कि उन्हें एक बड़ा ब्रेक चाहिए, और शोले वह मौका हो सकता है।
जब अमिताभ को पता चला कि रमेश सिप्पी शोले के लिए कास्टिंग कर रहे हैं, तो उन्होंने खुद पहल की। उन्होंने रमेश सिप्पी को फोन किया और जय के किरदार के लिए अपनी इच्छा जताई। यह वह समय था जब किसी अभिनेता का सीधे निर्देशक को फोन करना इतना आम नहीं था, खासकर जब वह अभी सुपरस्टार की श्रेणी में नहीं था।
रमेश सिप्पी पहले से जय के किरदार के लिए शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बड़े अभिनेताओं पर विचार कर रहे थे। शत्रुघ्न सिन्हा उस समय एक सफल अभिनेता थे और उन्हें इस रोल के लिए परफेक्ट माना जा रहा था। सिप्पी भी उन्हें कास्ट करना चाहते थे, लेकिन तब कुछ ऐसा हुआ जो अमिताभ के पक्ष में चला गया।
जया भादुरी और धर्मेंद्र की भूमिका
यह कहा जाता है कि उस समय अमिताभ बच्चन की पत्नी जया भादुरी, जो पहले से ही शोले में राधा का किरदार निभा रही थीं, ने भी अमिताभ के पक्ष में अपनी सिफारिश की। इसके अलावा, धर्मेंद्र, जो शोले में वीरू का किरदार निभा रहे थे, ने भी अमिताभ का समर्थन किया। धर्मेंद्र और अमिताभ पहले भी साथ काम कर चुके थे और उनके बीच अच्छी दोस्ती थी।
धर्मेंद्र ने रमेश सिप्पी से कहा कि अमिताभ एक उभरता हुआ सितारा है और उसे मौका देना चाहिए। धर्मेंद्र का प्रभाव फिल्म की कास्टिंग में अहम था, क्योंकि वह उस समय बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेताओं में से एक थे। उनकी बात का वजन था, और रमेश सिप्पी ने अमिताभ को एक मौका देने का फैसला किया।
अमिताभ का चयन और शोले की सफलता
अमिताभ बच्चन को अंततः “जय” के किरदार के लिए कास्ट कर लिया गया। जय का किरदार वीरू से बिल्कुल अलग था – वह शांत, गंभीर, और गहराई से भरा हुआ था। अमिताभ ने इस किरदार में अपनी शांत लेकिन प्रभावशाली अभिनय शैली को बखूबी निभाया। उनका संवाद, “इतना सन्नाटा क्यों है भाई?” और उनका “कौन जीतेगा, कौन हारेगा, ये तो वक्त ही बताएगा” जैसे संवाद आज भी याद किए जाते हैं।
शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई और फिल्म ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नया अध्याय लिख दिया। फिल्म ने न केवल रिकॉर्ड तोड़े बल्कि अमिताभ बच्चन को बॉलीवुड के “एंग्री यंग मैन” के रूप में स्थापित कर दिया। उनके और धर्मेंद्र के बीच की दोस्ती फिल्म में इतनी स्वाभाविक थी कि वह आज भी सबसे लोकप्रिय फिल्मी जोड़ियों में से एक मानी जाती है।
शोले के बाद अमिताभ का करियर
शोले की सफलता के बाद, अमिताभ बच्चन का करियर तेजी से उछला। उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दीं, जैसे दीवार, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, और कभी कभी। वह भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सुपरस्टार बन गए और आज भी उनके प्रशंसक उन्हें सदी के महानायक के रूप में सम्मानित करते हैं।
शोले में “जय” का किरदार उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। अगर वह खुद रमेश सिप्पी को फोन करके यह भूमिका न मांगते, या धर्मेंद्र और जया भादुरी का समर्थन न मिलता, तो शायद यह मौका किसी और अभिनेता को मिल जाता। लेकिन किस्मत ने अमिताभ को चुना, और बाकी तो इतिहास है।